शास्त्रों के वह वचन जिससे 90% हिंदू वंचित है

हिंदू धर्म के मूल में तीन स्तंभ है - गुरु गोविंद और ग्रंथ । वर्तमान में हिंदू केवल गोविंद और आंशिक तौर पर ग्रंथ तक ही सीमित हैं

जबकि सार्वभौम गुरु अर्थात प्रमाणिक व्यास गद्दी से दूरी एवं अशास्त्रीय बहुनेतृत्ववाद ही सनातन समाज की मूल समस्या है

भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद भी निर्बल और असहाय दिखता है क्योंकि व्यवहारिक तौर पर वह असंगठित है और इसका कारण यह है कि हिंदू समाज वैचारिक स्तर पर संगठित नहीं है ।
उदाहरण :- अभी कुछ दिनों पूर्व ही श्रीराम द्वारा सीता माता को वनवास भेजने के संबंध में प्रश्न करने पर स्वघोषित गुरुओं ने अपनी अल्पज्ञता को छुपाने हेतु उत्तरकांड को प्रक्षिप्त कहना शुरू कर दिया , जबकि उत्तरकांड प्रक्षिप्त नहीं है क्योंकि उत्तरकांड में दिए गए कई घटना क्रमों का विवरण कई अन्य प्रमाणिक ग्रंथों में दिया गया है ।

सीता परित्याग

विवरण – पद्म पुराण पाताल खंड अध्याय 57 , श्रीमद् भागवत 1:11:8-10

शंबूक वध

विवरण – पद्म पुराण सृष्टि खंड 32:82 , महाभारत शांति पर्व 12:149: 62

सौदास की कथा सर्ग 65

विवरण – विष्णु पुराण 4:4:38-58 , भागवत पुराण 9:9:20-25 , स्कंद पुराण 3:3:2 , महाभारत आदि पर्व 116-138

श्री राम का अश्वमेध यज्ञ -

विवरण – अग्नि पुराण 10:33 , पद्म पुराण अध्याय 44

सीता माता का भूमि प्रवेश -

विवरण – पद्म पुराण सृष्टि खंड 35

ऐसे में यदि उत्तरकांड को प्रक्षिप्त स्वीकार किया जाता है तो उसमे वर्णित घटनाओं के समर्थन में दिए गए पुराण आदि अन्य प्रमाणित ग्रंथों की प्रमाणिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है , ऐसे में इन ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास की प्रमाणिकता भी नहीं रह जाती एवं उनके द्वारा रचित महाभारत भगवद्गीता संपूर्ण सनातन साहित्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है ।

सीता माता को वनवास क्यों भेजा गया शंबूक वध क्यों किया गया इस पर भी पर्याप्त समाधान शास्त्रों द्वारा उपलब्ध है , परंतु मूल विषय से ना भटकें इसलिए इस पर यंहा विचार करना हम उचित नंही समझते हैं ।

परंतु स्वघोषित गुरुओं द्वारा दिए गए इस बयान के कारण इस समय हिंदू समाज श्री राम को लेकर ही दो भागों में बटा हुआ है , 1- जो मानता है उत्तरकांड प्रक्षिप्त है , 2- जो मानता है उत्तरकांड प्रक्षिप्त नहीं है , ऐसे में उत्तरकांड की सुरक्षा में वही लोग उपस्थित होंगे जो उत्तरकांड को प्रक्षिप्त नहीं मानते ।


इसी प्रकार उत्पन्न हुए वैचारिक मतभेदों के कारण हिन्दू अपने मूल – धर्म ईश्वर अथवा आध्यात्म के संबंध में बहुत ही अल्प आधारों पर बंटा हुआ है । जबकि शास्त्र कहते हैं

सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।।

ऋग्वेद 10:191:2
[हे धर्मनिरत विद्वानों !] आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें । समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें । जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर व विरोध त्याग करके अपना काम करें ।

ऐसा ना हो पाने का कारण हिंदुओं के मन में अपने धर्म और ईश्वर को लेकर बना हुआ है – संशय , जबकि शास्त्र कहते हैं

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति |

नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:

भगवद्गीता 4 :40
संदेह, संशय, दुविधा या द्वंद्व में जीने वाले लोग न तो इस लोक में सुख पाते हैं और न ही परलोक में। उनका जीवन निर्णयहीन, दिशाहीन और भटकाव से भरा रहता है।

इस स्थिति के उत्पन्न होने का कारण हिंदू को गुरु तत्व का बोध ना होना है , क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि 👇

स्कंद पुराण ( गुरु गीता 184 )

शास्त्र, युक्ति (तर्क) और अनुभूति से गुरु सर्व संशयों का छेदन करते हैं |

स्कंद पुराण ( गुरु गीता 19 20 21)

वेद शास्त्र पुराण आदि मंत्र यंत्र मोहन उच्चाटन आदि विद्या शैव शाक्त और अन्य सभी मत मतांतर , यह सभी बातें गुरु तत्व को जाने में बिना भ्रांत चित्त वालों का पथ भ्रष्ट करने वाली हैं , और गुरु के बिना जब तप व्रत तीर्थ दान यज्ञ यह सब व्यर्थ हो जाते हैं।

जिन्हें गुरु-तत्व के प्रति आस्था है भी उन्हें गुरु की पहचान करने के शास्त्र सम्मत नियमों का बोध नहीं है । जो नियम निम्नलिखित हैं 👇

गुरु की प्रमाणिकता

छान्दोग्य उपनिषद 6:14:2 व 4:9:3 + मुण्डकोपनिषद 1:2:12 + शतपथ ब्राह्मण 11:5:6 + भगवद्गीता 3:16 , 4:2
परंपरा प्राप्त आचार्य द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान ही प्रमाणिक होता है अतएव स्वध्यन ना करके परंपरा से प्रमाणिक आचार्य की शरण लेना ही परमार्थकारी है ।

सारा विश्व Marksheet Degree Certificate या Chain of narration आदि के रूप में सनातन समाज द्वारा दी गई इस शिक्षा का अनुसरण करता है क्योंकि उपरोक्त सभी प्रमाण पत्र शिक्षा के स्त्रोत के नामरूप में व्यक्ति के गुरु का नाम ही बताते हैं यंहा ध्यातव्य है कि यह शिक्षा किसी भी अन्य मजहबी अथवा अब्राह्मिक किताबों में नहीं दी गई है , जिस कारण इन समाजों की दिशाहीनता के स्तर को तो हम भली-भांति जानते हैं ।

प्रमाणिक गुरु के लक्षण

अथर्व वेद 11:7:16 + मनुस्मृति 12:112-114

ब्रह्मचारी (सन्यासी ) ही आचार्य बनता है |

मत्स्य पुराण 145:52

जो धर्म श्रुतियों ( वेद उपनिषद आदि ) और स्मृतियों ( पुराण रामायण महाभारत ) आदि द्वारा प्रतिपादित वर्णाश्रम के आचार से युक्त तथा शिष्टाचार द्वारा परिवर्तित होता है वही साधु सम्मत धर्म कहलाता है । अर्थात गुरु वह होना चाहिए जो समस्त प्रमाणिक श्रुति स्मृति शास्त्र में सामंजस्य की शिक्षा देता हो ।


इन नियमों को जान लेने पर भी हिंदू अपनी सर्वमान्य सार्वभौमिक गुरु परंपरा को नहीं जानता , जो निम्नलिखित हैं

सृष्टि के प्रारंभ से शुरू होने वाली गुरु परम्परा

भगवान नारायण – ब्रह्मा – वशिष्ठ – शक्ति – उनके पुत्र पाराशर -व्यास – शुकाचार्य – गौड़पदाचार्य – श्री गोविंद – शिवावतार भगवत्पाद आदि शंकराचार्य । ( गुरु वंश – मठाम्नाए – दिग्दर्शन सेतु – महानुशासनम् )

नोट – इस परंपरा की पुष्टि विभिन्न प्रमाणिक ग्रंथ वेद पुराण रामायण महाभारत आदि के द्वारा भी की जा सकती है , जिनके अध्ययन से ज्ञात होता है की कौन किसके गुरु थे।

अनीश्वरवादी बौद्धौं के शासन काल में अवतरित होकर बौद्धों के वर्चस्व को समाप्त कर नष्ट होते हुए वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना करने वाले भगवान आदि शंकराचार्य के रूप में परमेश्वर शिव का अवतरण 👇

भविष्योत्तर पुराण 36

कल्यब्दे द्विसहस्त्रान्ते लोकानुग्रहकाम्यया।
चतुर्भि: सह शिष्यैस्त शंकरोअवतरिष्यति | |

अर्थ ” कलि के दो सहस्त्र वर्ष व्यतीत होने के पश्चात लोक अनुग्रह की कामना से श्री सर्वेश्वर शिव अपने चार शिष्यों के साथ अवतार धारण कर अवतरित होते हैं।

लिंगपुराण 40. 20-21.1/2

निन्दन्ति वेदविद्यांच द्विजा: कर्माणि वै कलौ। कलौ देवौ महादेव: शंकरो नीललोहित:। प्रकाशते प्रतिष्ठार्थ धर्मस्य विकृताकृति:। ये तं विप्रा निषेवन्ते येन केनापि शंकरम्‌। | कलिदोषान्विनिर्जित्य प्रयान्ति परमं पदम्‌।
कलि में ब्राह्मण वेदविद्या और वैदिक कर्मों की जब निन्दा करने लगते हैं ;तब रुद्र संज्ञक विकटरुप नीललोहित महादेव धर्म की प्रतिष्ठा के लिये अवतीर्ण होते हैं। जो ब्राह्मणादि जिस किसी उपाय से उनका आस्था सहित अनुसरण सेवन करते हैं; वे परमगति को प्राप्त करते हैं।

शिवपुराण रुद्रखण्ड 7.1

व्याकुर्वन्‌ व्याससूत्रार्थ श्रुतेर्थ यथोचिवान्‌ ।
श्रुतेन्यार्य: स एवार्थ: शंकर: सवितानन:।।
अर्थ: “सूर्यसदृश प्रतापी श्री शिवावतार आचार्य शंकर , श्री बादरायण वेद व्यास रचित ब्रह्मसूत्र पर श्रुति सम्मत युक्तियुक्त भाष्य संरचना करते हैं।

कूर्मपुराण 28. 32-34

कलौ रुद्रो महादेवो लोकानामीश्वर: पर:।
न देवता भवेन्नृणाम् देवतानांच दैवतम्‌। । करिष्यत्यवताराणि शंकरो नीललोहित:। श्रौतस्मार्त्तप्रतिष्ठार्थ भक्तानां हितकाम्यया। | उपदेक्ष्यति तज्ज्ञानं शिष्याणां ब्रह्मासंज्ञितम। सर्ववेदान्तसार हि धर्मान वेदनदिशितान। |
येतं विप्रा निषेवन्ते येन केनोपचारत:।
विजित्य कलिजान दोषान यान्ति ते परम पदम। ।
कलि में देवों के देव महादेव लोकों के परमेश्वर रूद्र शिव मनुष्यों के उद्धार के लिये उनके भक्तों की हित की कामना से श्रौतस्मार्त प्रतिपादित धर्म की प्रतिष्ठा के लिये विविध अवतारों को ग्रहण करेंगें। वे शिष्यों को वेदप्रतिपादित सर्ववेदान्तसार ब्रह्मज्ञानरुप मोक्ष धर्मों का उपदेश करेंगें। जो ब्राह्मण जिस किसी भी प्रकार उनका सेवन करते हैं ; वे कलिप्रभाव दोषों को जीतकर परमपद को प्राप्त करते हैं।

उपरोक्त तथ्यों को न जानने वाले सर्वमान्य सार्वभौमिक गुरु पद को नहीं जानते जिसे प्रमाणिक तौर पर जगतगुरु कहा जाता है । क्योंकि वर्तमान में कोई भी अपने नाम के साथ जगतगुरु की उपाधि लगाने के लिए स्वतंत्र है ।

इस संबंध में –
भगवान शंकर की घोषणा

ब्रह्मा कृते युगे पूज्यस्त्रेतायां यज्ञ उच्यते ।

द्वापरे पूज्यते विष्णुरहं पूज्यश्चतुष्वर्पि ।।

( भगवान शिव – वायु पुराण 2:32:21 )
सतयुग में गुरु के रूप में ब्रह्मा पूज्य हैं त्रेता में यज्ञ अर्थात यज्ञ प्रवर्तक वशिष्ठ पूज्य हैं , द्वापर में विष्णु के कलावतार व्यास पूज्य हैं । चारों युगों में पूज्य में महेश्वर कलयुग में विशेष रूप से पूज्य हूं ।

भगवान आदि शंकराचार्य की घोषणा

कृतेविश्वगुरूब्रम्हात्रेतायांऋषिसप्तमः।

द्वापरेव्यासएवंस्यात्, कलावत्रभवाभ्यहम्।।

सतयुग में स्वयं ब्रह्मा , त्रेता में विष्णु द्वापर में व्यास देव विश्व गुरु थे इस कलयुग में मैं शंकराचार्य जगतगुरु हूं ।
( भगवान आदि शंकराचार्य – मठाम्नाए महानुशासनम् 77 )

भगवान आदि शंकराचार्य का आदेश

अस्मतपीठे समारूढ़: परिव्राताडक्तुलक्षण: ।

अहमेवेतिविज्ञयो यस्य देव‌ इति श्रुति: ।।

मेरे द्वारा प्रतिष्ठित पीठ पर आरूढ़ उक्त लक्षण संपन्न सन्यासी मुझ शिव स्वरूप ही मान्य है ।
( मट्ठाम्नाए महानुशासनम् 13 )

और अंततः इन सभी उपरोक्त तथ्यों को ना जानने वाले अपने प्रमाणिक गुरु को नहीं जान पाते , जिस के सानिध्य में हम सर्वप्रथम वैचारिक तदनुसार व्यवहारिक धरातल पर एक होते हुए सनातन धर्म पर आस्थान्वित समाज को शिक्षा रक्षा तथा सेवा से परिपूर्ण बनाते हुए उसे प्रतिराध बना सकते हैं ।

भगवान आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य – पद्मनाभ से लेकर अब तक 145 वें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ( वर्तमान के चारों शंकराचार्य में वरिष्ठत्तम ) आज भी सनातन धर्म के लिए अनवरत कार्यरत हैं । ( गुरु वंश गोवर्धन मठ )

जो नासा इसरो विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एवं अन्य कई विश्वस्तरीय व्यक्तित्वों का वैज्ञानिक आधार पर मार्गदर्शन कर चुके हैं

जिन्होंने धर्म दर्शन और अध्यात्म पर 200 से अधिक ग्रंथ लिखे हैं एवं 100 से अधिक प्रक्रियाधीन हैं

जिनके द्वारा वैदिक गणित पर लिखे गए ग्रंथों का अनुकरण विश्व के कई वैज्ञानिक कर रहे हैं

जिनके पास धर्म दर्शन एवं अध्यात्म से जुड़े हर प्रश्न का संतुष्टि जनक उत्तर है

जो वर्ष के 365 दिन सनातन धर्म की स्थापना हेतु भारतवर्ष में भ्रमण करते हैं

जिन्होंने 2025 तक भारत के हिंदू राष्ट्र घोषित हो जाने की भविष्यवाणी की है , जिसके बाद से स्वत: ही सनातन समाज के उत्थान हेतु कार्य करने वाले हर व्यक्ति अथवा संगठन के मुख पर हिंदू राष्ट्र की लहर देखने को मिल रही है

तद्नुसार हमारा लक्ष्य ,
विभिन्न मत मतांतर भ्रांतियों तथा संशयों के कारण बंटे हुए सनातन समाज को सर्वमान्य परंपरा से प्रमाणिक श्रीमज्जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्वीकार्य सनातन धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों के सानिध्य में लाकर संगठित करते हुए क्रमशः गुरु गोविंद और ग्रंथ से जोड़ कर सनातन समाज को उन्नत करना एवं उसे सुरक्षा प्रदान करना है ।

सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।।

ऋग्वेद 10:191:2
[हे धर्मनिरत विद्वानों !] आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें । समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें । जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर व विरोध त्याग करके अपना काम करें ।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

आह्वान के व्यवहारिक कार्य

वैचारिक एकता हेतु विद्यालय महाविद्यालय तथा इन्टरनेट आदि माध्यमों द्वारा सनातन की सुंदरता का वर्णन एवं धर्म के प्रति संशयों को प्रमाणिक तथ्यों द्वारा समाप्त करने वाली निःशुल्क कक्षाओं का आयोजन करना ।

सनातन समाज की व्यवहारिक एकता हेतु साप्ताहिक हिंदू राष्ट्र संगोष्ठीयों के माध्यम से मठ मंदिरों को शिक्षा रक्षा तथा सेवा का केन्द्र बनाना ।

आपका सहयोग:-

नित्यप्रति दिन भर में कम से कम सवा घंटे अपने इष्ट का ध्यान अवश्य करें सहयोग के लिए आह्वान द्वारा आयोजित की जाने वाली नाम रट कक्षाओं से जुड़े

संभव हो तो सभी , अन्यथा कम से कम घर के किसी भी एक सदस्य को आह्वान की निशुल्क साप्ताहिक कक्षाओं से अवश्य जोड़ें

अपने घर के निकटतम आयोजित होने वाली हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी में साप्ताहिक रूप से अपनी उपस्थिति देकर वहां सामूहिक भगवन्नाम का पाठ करें तथा वंहा उपलब्ध होने वाले शिक्षा रक्षा एवं सेवा आदि प्रकल्पों के भागीदार बनें

धर्म अथवा दर्शन के सम्बन्ध में उत्पन्न होने वाले संशयों के निराकरण हेतु आह्वान से सम्पर्क करें परंपरा प्राप्त आचार्य द्वारा दिया गया प्रमाणिक समाधान आपको शीघ्र अति शीघ्र उपलब्ध कराया जाएगा

आह्वान की निःशुल्क राम श्रवण सेवा द्वारा घर में आयोजित होने वाले के किसी भी अनुष्ठान में अतिथि गणों को धर्म के प्रमाणिक महत्वपूर्ण तथा सौंदर्य से ओतप्रोत वर्णन का श्रवण अवश्य कराएं ।

सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें एवं प्राप्त होने वाले संदेशों को मानव हित में आगे प्रेषित कर हमारे अभियान को बल प्रदान करें

अतः सभी सनातनीयों से निवेदन है कि प्रमाण तर्क और व्यवहारिक धरातल पर सिद्ध अपने सार्वभौमिक धर्मगुरु को जाने और उन से प्राप्त होने वाले सनातन धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों के सानिध्य में सनातन समाज को संगठित करने हेतु प्रयासरत हों । केवल इस एक उपाय से ही सनातन धर्म के हित की सिद्धि सिद्ध है ।

निवेदक
शिवांश नारायण द्विवेदी
आह्वान धर्म रक्षार्थ सेवा समिति

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